Muhurat

MUHURAT
Muhurat is a time where any auspicious event or suitable event can be done to give best results. It is primarily decided by the Nakshatras, Titihi and position of planets.

When we say muhurt, on an average it is assumed to be of  48 minutes. . It is based on assumption day is of 12 hours.  Thus 48 minutes can vary but overall , the time range mentioned as a muhurat covers this aspect.

There have been lot of ancient books (maartand /ganpati/parijaat/dharm sindhu etc) on Muhurat. Muhurat indepth analysis requires lot of time and study. And Muhurat of various activities has various combinations. 
A muhurat of digging a well is entirely different from the muhurat of opening the shop.
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When we have to see the muhurat, we have to refer to Panchang (Panch + ang = 5 parts)
Panchang includes:
 1: Tithi as per Hindu Calendar
2. Vaar i.e. Day
3. Nakshatra
4. Yog - It is based on the combinations of Tithi,day, planet and Naakshatra
5 Karan

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Yog List:

अमृत सिद्धि योग :-  शुभ योग है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर|
लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है।


 सिद्धि योग :- वार, नक्षत्र और तिथि
सोमवार के दिन अगर नवमी अथवा दशमी तिथि हो एवं रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, श्रवण और शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो तो सिद्धि योग बनता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग :-  शुभ योग है। यह वार और नक्षत्र के मेल से बनने वाला योग है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो तिथि कोई भी यह योग नष्ट नहीं होता है|
सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, अथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है।
नक्षत्रों के गणनाओं पर आधारित सर्वार्थसिद्धि योग अत्यंत ही शुभ है. जैसा कि नाम से ही  ज्ञात है इस योग में किया जाने वाला कोई भी शुभ कार्य सफल होता है एवं इच्छित फल प्रदान करता है. इस योग में नक्षत्रो एवं वारों (दिनों) की गणना का विशेष महत्व है. सर्वाध सिद्धि योग सर्वदा सिद्धि, वार तथा चन्द्र नक्षत्र के योग से होता है जो निम्न है।
  •  सोमवार को श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा तथा अनुराधा नक्षत्र पड़ने पर।
  •  मंगलवार को अश्विनी, उत्तराभद्रापद ,कृतिका और नक्षत्र पड़ने पर।
  • बुधवार को रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका और मृगशिरा नक्षत्र पड़ने पर।
  • रविवार को हस्त, मूल, अश्विनी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तरषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद पड़ने पर.
  • शुक्रवार को रेवती, अनुराधा, अश्विनी और श्रवण नक्षत्र पड़ने पर
  • शानिवार को श्रवण रोहिणी और स्वाति नक्षत्र पड़ने पर।
  • गुरूवार को रेवती अनुराधा आश्विनी पुनर्वास और नक्षत्र पड़ने पर।
इस योग में नया कार्य प्रारम्भ करने पर चातुर्दिक, अथवा सर्वागीण सफलता मिलती है। वार तथा तिथि के योग से “सिद्धियोग“ होता है तो वार और चान्द्र नक्षत्र के योग से “सर्वार्थ सिद्धि” योग होता है।
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पुष्कर योग :- सूर्य विशाखा नक्षत्र में होता है और चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। । यह योग सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम मुहूर्त होता है।
गुरु पुष्य योग :- गुरुवार और पुष्य नक्षत्र | यह योग गृह प्रवेश, ग्रह शांति, शिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। 
रवि पुष्य योग :- रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। शुभ मुहूर्त 
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भद्रा तिथियां अर्थात् द्वितीया, सप्तमी या दशमी तिथियां में से ही कोई तिथि रविवार या मंगलवार या शनिवार को पड़े तथा उस दिन चन्द्रमा विशिष्ट नक्षत्र में हो तभी चन्द्रनक्षत्रानुसार “द्विपुष्कर” अथवा “त्रिपुष्कर योग”होगा.

धनिष्ठा, चित्रा या मृगशिरा नक्षत्र में चन्द्रमा हो, तो “द्विपुष्कर” योग होगा तथा  कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उतराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में चन्द्रमा हो तो “त्रिपुरष्कार योग” होगा।

शास्त्रों के अनुसार “द्विपुष्कर योग” में जो शुभ कार्य प्रारम्भ होता है तो उसकी पुनरावृत्ति होती है या यूँ कहें कि इस योग में संपन्न हुआ कोई भी शुभ कार्य या शुभाशुभ घटना कालान्तर में द्विगणित अथवा दोगुना हो जाती है.

अतः  इस दिन शुभ कार्य ही करने चाहिए, जैसे सम्पत्ति का क्रय , धन का विनियोग या  किसी भी नए शुभ कार्य का प्रारम्भ आदि । श्राद्धादि जैसे अशुभ कार्य कभी भी द्विपुष्कर योग में नहीं करनी चाहिए किसी की मृत्यु द्विपुष्कर या त्रिपुष्कर की अंत्योष्टि क्रिया तथा उसके प्रमुख श्राद्ध कर्म को “द्विपुष्कर” या “त्रिपुष्कर योग” में नहीं करना चाहिए।
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योग क्या है?
सूर्य-चन्द्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। योग 27 प्रकार के होते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1.विष्कुम्भ, 2.प्रीति, 3.आयुष्मान, 4.सौभाग्य, 5.शोभन, 6.अतिगण्ड, 7.सुकर्मा, 8.धृति, 9.शूल, 10.गण्ड, 11.वृद्धि, 12.ध्रुव, 13.व्याघात, 14.हर्षण, 15.वज्र, 16.सिद्धि, 17.व्यतिपात, 18.वरीयान, 19.परिध, 20.शिव, 21.सिद्ध, 22.साध्य, 23.शुभ, 24.शुक्ल, 25.ब्रह्म, 26.इन्द्र और 27.वैधृति।
अशुभ योग कौन से हैं?
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये 9 अशुभ योग हैं- विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिध और वैधृति।

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2019 Gajachchhaya Yoga

Gajachchhaya Yoga (गजच्छाया योग) doesn’t form every year. But whenever Gajachchhaya Yoga occurs it occurs during Pitru Paksha and it is considered highly auspicious for performing Shraddha rituals and charity.

The sun transits through Hasta Nakshatra once in a year and mostly during Pitru Paksha. The combination when the Sun is in Hasta Nakshatra and the Moon is in Magha Nakshatra during Trayodashi Tithi of Pitru Paksha is known as Gajachchhaya Yoga.

Similarly the combination when the Sun is in Hasta Nakshatra and the Moon in Hasta Nakshatra during Amavasya Tithi of Pitru Paksha is also known as Gajachchhaya Yoga. Hence there might be one or two Gajachchhaya Yoga during Pitru Paksha. This auspicious combination occurs either on Trayodashi Tithi or on Amavasya Tithi.

Gajachchhaya Yoga is useful when it falls during day time and it has no value when it falls during night time. However we list Gajachchhaya Yoga irrespective of it falling during day time or night time.
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एक मुहूर्त लगभग दो घटी अर्थात 48 मिनट का होता है। यह तब होता है जब दिन और रात दोनों बराबर होते हैं अर्थात 30 घटी (12 घंटे) का दिन और 30 घटी (12 घंटे) की रात्रि। इस प्रकार दिन में लगभग 15 मुहूर्त और रात्रि में भी 15 मुहूर्त होते हैं। यहां दिन की अवधि को दिन मान के द्वारा तथा रात्रि की अवधि को रात्रिमान के अनुसार ज्ञात किया जाता है। जब दिन और रात का अंतर अलग-अलग होता है अर्थात ये बराबर नहीं होते तब मुहूर्त की अवधि कम अथवा ज्यादा होती है क्योंकि तब दिनमान और रात्रि मान में अंतर आ जाता है।

शुभ मुहूर्त या योग को लेकर मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि शास्त्र हैं।
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 हिन्दू पंचांग में मुख्य 5 बातों का ध्यान रखा जाता है। इन पांचों के आधार पर ही कैलेंडर विकसित होता है। ये 5 बातें हैं- 1. तिथि, 2. वार, 3. नक्षत्र, 4. योग और 5. करण।

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